
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मंगलवार को एक अहम राजनीतिक मोड़ का गवाह बनी, जब उपराष्ट्रपति चुनाव 2025 को लेकर विपक्षी खेमे के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी ‘इंडिया गठबंधन’ के नेताओं से समर्थन लेने पहुंचे।
उनका मुख्य उद्देश्य था – सपा प्रमुख अखिलेश यादव का समर्थन प्राप्त करना, जो अब उत्तर भारतीय राजनीति में विपक्ष की रीढ़ माने जाते हैं।
अखिलेश यादव ने खोला समर्थन का मोर्चा
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने रेड्डी को समर्थन देते हुए कहा:
“यह चुनाव सिर्फ पद का नहीं, सामाजिक न्याय की नई व्याख्या का है। जो ‘न्याय’ के साथ हैं, वे रेड्डी को वोट दें।”
यह बात साफ है कि सपा अपने PDए फॉर्मूले (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) को इस चुनाव के ज़रिए और मज़बूती देना चाहती है। ये केवल रणनीति नहीं, बल्कि नरेटिव बिल्डिंग है — और अखिलेश इस खेल में माहिर होते जा रहे हैं।
रेड्डी का ‘रेड्डीनेस’: हिंदी में भाषण, अखिलेश को श्रेय
रेड्डी ने खुद को ‘पॉलिटिकल नॉर्थ’ से जोड़ते हुए कहा:
“मैं दक्षिण भारत से हूं, लेकिन अब हिंदी में बोल रहा हूं — यह मेरा नहीं, अखिलेश यादव जैसे नेताओं का समर्थन है जो संभव बना रहे हैं।”
उन्होंने इस चुनाव को संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा से जोड़ते हुए, इसे गैर-राजनीतिक बताया और सभी दलों से एकजुट होकर समर्थन मांगा।
ताज होटल में ‘इंडिया महागठबंधन’ की स्ट्रैटजी मीटिंग
लखनऊ के ताज होटल में हुई एक बंद कमरे की बैठक में कई बड़े चेहरे दिखे:
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सपा से: डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, जया बच्चन, इकरा हसन
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कांग्रेस से: यूपी प्रभारी और राज्यसभा सांसदों की टुकड़ी

बैठक का मकसद था — सांसदों को एक लाइन में लाना, आखिरी वक्त पर क्रॉस वोटिंग रोकना और बीजेपी के खिलाफ मोमेंटम तैयार करना।
बीजेपी बनाम INDIA: 9 सितंबर को होगी कांटे की टक्कर
इस उपराष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला है:
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बीजेपी के सी.पी. राधाकृष्णन
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INDIA गठबंधन के बी. सुदर्शन रेड्डी
यह चुनाव इसलिए भी रोचक है क्योंकि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह पद खाली हुआ।
अब देखना ये है:
क्या अखिलेश का साथ और विपक्ष की रणनीति रेड्डी को जीत दिला पाएगी या बीजेपी फिर से बाजी मार जाएगी?
2029 का सेमीफाइनल भी हो सकता है!
रेड्डी का उत्तर भारत में एक्टिव होना, अखिलेश का PDए एजेंडा और इंडिया गठबंधन का मेल — ये सब संकेत हैं कि यह उपराष्ट्रपति चुनाव एक बड़े वैचारिक संग्राम की पूर्वपीठिका है।
“अगर विपक्ष ये चुनाव जीतता है, तो ये मोदी सरकार के खिलाफ मनोवैज्ञानिक जीत मानी जाएगी। और अगर हारता है, तो 2029 की राह और कठिन होगी।”
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